स्वीकार कर लो सबकुछ
आज
अभी
एक ही पल में ।
अपनी हीं संवेदनाओं के आड़े-तिरछे तीखेपन से
बार-बार कटते और मिटते चले जाना न कोई ज़रूरी संघर्ष है
और न हीं अपने ब्यक्तित्व संभाले रहने की अनिवार्य क़ीमत ।
व्यक्ति और रिश्तों की तरह
जिन्दगी सिर्फ अपनी सम्पूर्णता में ही खूबसूरत है,
एक सार्थक अनुभूति की तलाश की थकान में
बार-बार परिभाषित होकर
टुकड़े- टुकड़े में बंटते चले जाने में नहीं ।