Sunday, 12 September 2010

रात आधी हो गयी है |

सो गए हैं लोग लेकिन स्वप्न उनमें जागते हैं,

खलबली से थक चुके इंसान उनमे जागते हैं

नींद में हर फिक्र थक कर सो गयी है,

रात आधी हो गयी है |

हो चुकीं विस्मृत उनमे वासनाओं की कतारें,

शांत पड़ते मन -पटल पर भगवान उनमे जागते हैं,

उलझनों की पकड़ मन पर आज ढीली हो गयी है,

रात आधी हो गयी है |

4 comments:

  1. खलबली से थक चुके इंसान उनमे जागते हैं
    sundar abhivyakti!!!

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  2. अनुपमा जी, मेरी रचना में से आपको कुछ पसंद आया, इस उत्साहवर्धन के लिए आपको धन्यवाद |

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  3. सो गए हैं लोग लेकिन स्वप्न उनमें जागते हैं,

    खलबली से थक चुके इंसान उनमे जागते हैं

    ji haa .. abhi yahi panktiyaa behtar hai..is samay ke lihaaj se... bahut khoob likha hai

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    1. धन्यवाद डॉ नूतन । आपके शब्द मुझे अच्छे लगे ।

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